अजीत पवार: बेनामी संपत्ति विवाद में बड़ी राहत, आयकर विभाग ने दी क्लीन चिट
(मुंबई, विशेष संवाददाता)
दि. 07 डिसेंबर 2024
पुरी खबर :- महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार का नाम पिछले कई सालों से बेनामी संपत्ति विवादों में घिरा हुआ था। आयकर विभाग ने 2021 में उनके और उनके परिवार से कथित तौर पर जुड़ी 1,000 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्तियों को जब्त किया था। इन संपत्तियों में दक्षिणी दिल्ली में 20 करोड़ रुपये का फ्लैट, मुंबई के निर्मल टॉवर में 25 करोड़ का ऑफिस, गोवा में 250 करोड़ रुपये का रिसॉर्ट, और 600 करोड़ रुपये की जरंदेश्वर शुगर फैक्ट्री शामिल थी। विभाग ने पुणे, मुंबई, गोवा, और अन्य स्थानों पर छापेमारी के दौरान 184 करोड़ रुपये की बेहिसाब आय और नकदी जब्त की थी.
क्या था मामला?
आयकर विभाग ने आरोप लगाया था कि ये संपत्तियां बेनामी लेनदेन अधिनियम के तहत अधिग्रहित की गई थीं। छापेमारी के बाद इन परिसरों को जब्त कर दिया गया था। विभाग ने यह भी दावा किया था कि संपत्तियों के लिए धन का स्रोत स्पष्ट नहीं था। इस कार्रवाई ने महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल मचा दी थी और विपक्ष ने इसे भ्रष्टाचार का मामला बताते हुए पवार पर निशाना साधा था।
क्लीन चिट कैसे मिली?
हाल ही में दिल्ली ट्रिब्यूनल कोर्ट ने अजीत पवार को इस मामले में बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने आयकर विभाग द्वारा जब्त की गई संपत्तियों पर लगे आरोपों को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि विभाग के पास यह साबित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं कि ये संपत्तियां बेनामी लेनदेन से संबंधित थीं। इसके साथ ही विभाग की जब्ती कार्रवाई भी रद्द कर दी गई.
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राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
इस फैसले के बाद महाराष्ट्र की राजनीति गरमा गई है। अजीत पवार ने इसे न्याय की जीत करार दिया और कहा कि वे शुरुआत से ही निर्दोष थे। उन्होंने इस मामले को राजनीति से प्रेरित बताया। वहीं, विपक्षी दलों ने इस क्लीन चिट पर सवाल उठाए। शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत ने इसे एजेंसियों का दुरुपयोग बताते हुए आरोप लगाया कि सत्ता के दबाव में मामले को खत्म किया गया.
क्या आगे भी हो सकती है जांच?
हालांकि, कोर्ट के फैसले के बावजूद विपक्ष ने मामले की गहन जांच की मांग की है। उन्होंने बेनामी संपत्ति के पूरे प्रकरण को सार्वजनिक करने और न्यायिक जांच कराने की अपील की है।
प्रभाव और चर्चा
यह प्रकरण प्रशासनिक और राजनीतिक हलकों में चर्चा का केंद्र बन गया है। क्या यह केवल न्याय की जीत है या एजेंसियों की विफलता, यह सवाल अब हर राजनीतिक गलियारे में उठाया जा रहा है।
(रिपोर्ट: विशेष संवाददाता, मुंबई)