वार्ड की स्थिति 2 वर्षों बाद भी जस की तस,
महाराष्ट सरकार ने नवंबर 2019 को 19 करोड़ चौवन लाख चौवन हजार नौ सौ पन्द्रह रुपये बतौर कीमत बेंडले परिवार को दिए
चंन्द्रपुर/महाराष्ट्र
कामता कुमार सिंह -दुर्गापुर सवांददाता-
दि. 24 दिसंबर 2021
पुरी खबर :- दुर्गापुर वार्ड नं.3 का सर्वे क्रमांक 167 व 168 के सवा बाइस एकड़ जमीन पर लगभग 900 परिवारों द्वारा झोपड़ी अथवा मकान बनाकर रह रहे लोंगो का वर्षों पुराना मामला हल होते होते रह गया। उक्त जमीन का मालकी हक बेंडले परिवार के पास था परन्तु जमीन लोंगो द्वारा अतिक्रमित था। लंबी न्यायलयीन लड़ाई लड़ने के बाद मुंबई उच्च न्यायालय के नागपुर खंडपीठ के आदेश पर महाराष्ट सरकार ने नवंबर 2019 को 19,54,54,915 /₹ (19 करोड़ चौवन लाख चौवन हजार नौ सौ पन्द्रह रुपये ) बतौर कीमत बेंडले परिवार को दिया। उसके बाद उक्त जमीन के 7/12 पर महाराष्ट्र शासन का नाम चढ़ गया। यानी कि जमीन का मुआवजा मिलने के बाद बेंडले परिवार का जमीन का मालिकी हक वाला जमीन नवंबर 2019 के बाद महाराष्ट्र शासन के नाम तो हो गया परन्तु दो वर्ष बाद भी उक्त जमीन पर बैठे लोंगों की स्थिति अब भी पहले ही जैसा है।
टाउन प्लानिंग के तहत विकास करने की जरूरत..।
- जमीन महाराष्ट शासन के नाम होने के साथ ही कुछ नियम व शर्ते थी, जिसमें मुख्य यह था कि वर्षों से जगह पर झोपड़ी अथवा मकान बनाकर बैठे लोंगों को एक शर्त के तहत जमीन आवंटित किया जाये। टाउन प्लानिंग के तहत महाराष्ट शासन द्वारा प्लॉट गिराकर लोंगो को जमीन आवंटित करना। इससे यह होता कि प्लॉट आवंटित हो जाने के बाद उनके नाम से 7/12 बन सकेगा। प्रत्येक प्लॉट धारक के सामने नियमानुसार सड़क होगा,जरूरत के हिसाब से ओपन स्पेस होंगा। आगे चलकर कांक्रीट रोड, नाली बनेंगे। स्ट्रीट लाइट और सरकार के योजना के तहत शुद्ध पीने के पानी का पाइप लाइन बिछाई जाएगी।
प्लॉट धारक के नाम 7/12 मिलना चाहिए
- एक बार प्लॉट धारक के नाम 7/12 हो जाएगा तब उन्हें अधिकृत स्थायी टैक्स पावती मिलेगा। इससे लाभ यह होगा कि किसी को जमानत ली जा सकेंगी। घर बांधने के लिए लोन मिल सकेगा। घर व जमीन बेचना व लेना आसानी से किया जा सकेगा।
लेकिन जिस उधेश्य की पूर्ति हेतु उक्त जमीन पर बैठे लोंगो की समस्या दूर करने के लिए न्यायालय के आदेश पर जमीन का हस्तांतरण बेंडले परिवार से महाराष्ट शासन के नाम पर किया गया, दो वर्ष बाद भी कमोबेश वही स्थिति ज्यो के त्यों बनी हुई है। सर्वे क्रमांक 167 व 168 का कागजी मालिकाना बदला परन्तु जमीनी स्तर पर काम नहीं हुआ। इसके लिये सर्व प्रथम उक्त जमीन पर बैठे लोंगों के जरूरत के हिसाब से प्लॉट गिराना और वितरण करने की जरूरत है। उसके बाद वहाँ विकास का काम की जानी चाहिए।
बिना नियोजन के हो रहे लाखों खर्च..।
- जमीन की प्लॉट गिराए बगैर जहाँ तहां यू ही गली रूपी सड़क की खड़ीकरण करने तथा स्ट्रीट लाइट के लिए खंभे गाड़ने और उसपर लाइट लगाने से ठेकेदार को भले ही फायदा हो जाएगा परन्तु सही मायने में शासन और लोंगों को नुकसान ही होना है। आज जो सड़क की खड़ी करण और स्ट्रीट लाइट के लिए खर्च हो रहे है, जब नियमानुसार टाउन प्लानिंग के तहत प्लॉट ,सड़क और ओपन स्पेस के लिए जगह आवंटित होंगे तब आज जो काम हो रहा है हो सकता है कि वह सड़क व लाइट रोड पर अथवा किसी के प्लॉट पर आ जाये। अच्छा तो तब होता कि पहले प्लॉट गिराकर संबंधित लोंगो को जब प्लॉट का वितरण हो उसके बाद उस पर सड़क और स्ट्रीट लाइट लगाने का काम किया जाए।
जानकारी अनुसार आज उस जगह पर स्ट्रीट लाइट लगाने के लिए 98 लाख 48 हजार 9 सौ इक्यावन रुपए खर्च हो चुके है और सड़क खंडीकरण करने सहित कुछ और काम के लिए उस पर 30 लाख रुपये का काम शुरू है।
समग्र विकास के लिए क्षेत्रिय राजनीति को दूर रखकर सभी राजनीति दलों को चाहिए कि मिलकर काम करे। आज उस प्लाट का मालिक महाराष्ट शासन है। महाराष्ट्र शासन का जिला मुखिया जिलाधिकारी होते है। जिलाधिकारी ही वह उच्चाधिकारी है कि वार्ड नं. 3 के सर्वे क्रमांक 168 व 169 के साढ़े बाइस एकड़ जमीन पर वर्षो से बैठे लगभग 900 परिवारों का उचित प्लॉट का वितरण कर के आधुनिक गाँव के रूप विकसित कर सकता है। वार्ड के गणमान्यों सहित उन सभी जनप्रतिनिधियों को जिलाधिकारी से मिलकर उनपर उचित दबाव डालकर समुचित विकास हेतु उक्त जमीन पर आभिन्यास कर लोंगो के नाम प्लॉट आवंटित करने के लिए अनुरोध करने की जरूरत है। अन्यथा पूर्व जमीन मालिक बेंडले परिवर को महाराष्ट शासन द्वारा साढ़े 19 करोड़ रुपये दिए जाने के बावजूद उक्त जमीन पर बैठे लोंगो को कुछ विशेष लाभ नहीं होते दिख रहा है।