दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 के तहत दायर एक एफआईआर को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि बालिग होने के बाद पीड़िता ने अभियुक्त के साथ मामले में समझौता करने का फैसला किया है।
न्यायमूर्ति सुब्रमणियम प्रसाद की एकल पीठ ने कहा किः ”पाॅक्सो अधिनियम के तहत अपराध को रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करना विधायिका की मंशा के खिलाफ जाएगा, जिसने बच्चों के हितों की रक्षा के लिए विशेष अधिनियम बनाया है। प्राथमिकी को इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है कि पीड़िता ने बालिग होने के बाद आरोपी के साथ मामले में समझौता करने का फैसला किया है।”
कोर्ट इस मामले में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिका पर विचार कर रही थी। जिसमें आईपीसी की धारा 354 (महिला की शील भंग करने के इरादे से उस पर आपराधिक बल प्रयोग करना), 354 डी (स्टैकिंग), 506 (आपराधिक धमकी के लिए सजा), 509 (शब्द, इशारा या किसी हरकत से महिला का अपमान करने का इरादा), 34 ( एक समान इरादा) और पाॅक्सो एक्ट की धारा 10 (यौन उत्पीड़न के लिए सजा) के तहत दर्ज प्राथमिकी को इस आधार पर रद्द करने की मांग की गई थी कि पीड़िता व याचिकाकर्ता ने मामले में समझौता कर लिया है।
चार्जशीट के अनुसार, पीड़िता/शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि आरोपी उसके दूर का रिश्तेदार है,जो उसके घर में रहने लगा था और यह आरोपी व्यक्ति उसके माता-पिता की अनुपस्थिति में ”उसे अजीब नजरों से देखने लगा” था। इसके अलावा, यह भी आरोप लगाया गया था कि आरोपी ने अपने अन्य दो भतीजों के साथ मिलकर उसे उसकी तस्वीरों के संबंध में धमकी दी थी और उसके माता-पिता को मारने की बात भी कही थी। पीड़िता ने बालिग होने के बाद व उसकी मां ने आरोपी व्यक्तियों के साथ समझौता कर लिया था,जिसके बाद यह याचिका दायर की गई थी।
न्यायालय ने यह ध्यान में रखा कि पाॅक्सो एक्ट के तहत किए गए अपराध को रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का उपयोग करना विधानमंडल की मंशा के खिलाफ जाएगा,वहीं पाॅक्सो एक्ट के उद्देश्य और कारण के बयान पर भी ध्यान दिया, जिसमें लिखा गया है कि ”बलात्कार जैसे जघन्य अपराध को हाईकोर्ट द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 के तहत मिली शक्ति का प्रयोग करके रद्द नहीं किया जा सकता है,भले ही मामले में पीड़िता और अभियुक्त ने समझौता कर लिया हो।”
इसके मद्देनजर, अदालत ने यह देखते हुए याचिका खारिज कर दी कि अदालत ऐसे मामले में एफआईआर को रद्द करने के लिए इच्छुक नहीं है, जिनमें याचिकाकर्ताओं पर पाॅक्सो एक्ट की धारा 10 के तहत आरोप लगाया गया था।